loading...
हमारा देश भी अजीब है l, और उससे ज्यादा अजीब है, देश के बुद्धिजीवी, जब बात हिंदू त्योहारों की आती है , तो बुद्धिजीवियों को प्रगति और पर्यावरण की चिंता होने लगती है, और वह हिंदू त्योहारों पर पर्यवरण का हवाला देते बहुत ही सादा तरीके से मनाने की सलाह देते है।
लेकिन वहीं दूसरी तरफ जब दूसरे धर्मों के त्योहार की बात आती हैं, तो बुद्धिजीवी एकदम मौन हो जाते है,जब उन को प्रगति की कोई चिंता फिक्र नही होती है, और ना वह कुछ बोलना उचित ही समझते हैं,
loading...
ईद के अवसर पर लाखों निरपराध पशुओं को बेवजह मारा जाता है, जिससे पर्यावरण को अत्यधिक नुकसान होता है इतनी अधिक संख्या में मरने के लिए कसाइ खानों में लाखों लीटर पानी का इस्माल होता है,लाखो लीटर पानी भी ऐसे ही वहाया जाता है, जब बुद्धिजीवियों को प्रगति और पर्यावरण की चिंता नहीं होती, उन्हें नहीं लगता कि इससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, लाखो लीटर पानी बेवजह वहाया जा रहा है, लाखों पशुओं की हत्या की जा रही है, लेकिम इसपर बुद्धिजीवी मौन रहते हैं।*जब बात गणेश महोत्सव की हो तो बुद्धिजीवी करते है मिट्टी की गणेश जी बनाए, *
बात जब दीपावली की हो तो बुद्धिजीवी सलाह देते है, कि बम पटाखे ना चलाई जाए क्योंकि इससे पर्यावरण में नुकसान होगा, और बीमार लोगों को भी तकलीफ होगी,
*बात जब होली की हो तो बुद्धिजीवी कहते है आप सुखी रंग,गुलाल से होली खेले, होली पर पानी ना वहायें क्योंकि पानी बहुत अनमोल है, उसे बिना वजह बहाना सही नहीं है,
वही जब बात ईद पर लाखों जीवों को काटने की हो तो बुद्धिजीवी को ना तो पर्यावरण की कोई फिक्र होती है और ना कोई प्रदूषण, और वही पूरी दुनिया में जानवरों की रक्षा अभियान चलाने वाली संस्था पेटा भी इस पर कुछ नहीं बोलता।
बॉलीबुड फ़िल्म अभिनेता अनुपम खेर ने पर्यावरण प्रेमी बुद्दिजीवी ने लताड़ लगाते हुए कहा है मिट्टी की मूर्ति,सूखे रंगों से होली,बिना बम-फाटाके चलाये दीपावली मनाने की सलाह देने वाले बुद्दिजीवी ईद पर कुर्वानी के नाम पर लाखों जीवों हत्या, लाखों लिटाकर पानी की बर्बादी पर मौन क्यों हो जाते है?
तो क्या केवल हिंदू त्यौहार मनाने से ही पर्यावरण को नुकसान होता है, क्या लाखों जीवो की हत्या करना पर्यावरण के लिए सही है? या फिर बुद्धिजीवियों की बुद्धि हिंदू त्यौहार तक ही काम करती है?
loading...
loading...
loading...


0 comments: