काबा और भगवान शिव
‘काबा’ अरब का प्राचीन मन्दिर है। जो मक्का शहर में है। विक्रम की प्रथम शताब्दी के आरम्भ में रोमक इतिहास लेखक ‘द्यौद्रस् सलस्’ लिखता है – यहाँ इस देश में एक मन्दिर है, जो अरबों का अत्यन्त पूजनीय है। इस कथन से इस बात को बल मिलता है कि काबा और भगवान शिव का कोई न कोई प्राचीन जुड़ाव जरूर है। पूरा विश्व आज काबा का सच को जानने को उत्सुक है किन्तु वर्तमान परिदृश्य मे काबा मे गैर-इस्लमिक या कहे कि गैर मुस्लिम का जाना प्रतिबंधित है इस कारण काबा के अंदर क्या है और इसके पीछे सच का का बहुत खुलासा आज तक नही हो पाया है।
इस्लामिक मान्यता से इतर काबा शरीफ का इतिहास
सम्पूर्ण विश्व क्या भारत के लोग ही यह कटु सत्य स्वीकार नही कर सकते कि इस्लाम ने हिन्दू की आस्था माने जाने वाले असंख्य मंदिर तोड़े है और उनके स्थान पर उसी मंदिर के अवशेष से मस्जितों को निर्माण करवाया।मक्का का इतिहास के बारे इसी बात से पता चलता है कि इस्लामिक विध्वंशक गतिविधियां इतनी प्रंचडता के साथ की जाती थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय और सोमनाथ मंदिर विध्वंश किये गये, तो भारत से हजारों किलो मीटर दूर काबा और मक्का मे क्या हुआ होगाए इसके बारे मे कह पाना बिना अध्ययन के बहुत उचित नही होगा।
इस्लाम नीव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का अनादर करों और उनको नेस्तानाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जित और मकबरे का निर्माण किया किया जाए। इस काम बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगो को मौत के घाट उतार दिया जाये।
भले ही वे लोग मुस्लिमो को परेशान न करते हो। मुहम्मद साहब और मुसलमानों के हमले से मक्का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया।
इस्लाम एक तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा और इसका अंत भी उस से ही होगा किंतु पी एन ओक ने सिद्ध कर दिया है मक्केश्वर शिवलिंग ही हजे अस्वद है। मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है।
काबा में शिव और मक्का मदीना का रहस्य
द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मानना है कि मक्का में मक्केश्वर महादेव मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा थी, वह इसके बहुत विरोधी थें। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को ‘लात’ कहा जाता था।
मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इराक और सीरिया में सुबी नाम से एक जाति थी यही साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम।
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं। मक्का मदीना के शिवलिंग का रहस्य क्या है इसे इस्लाम पंथियों द्वारा सदा से छिपाया जा रहा है।
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