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आपने सोशल मीडिया पर और ख़बरों में भी सुना होगा कि इजराइल अपने आप में एक सशक्त, मजबूत और दुश्मनों के लिए एक घातक देश है लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर पूरी दुनिया में मुट्ठी भर यहूदी इतने सशक्त कैसे हैं और सुरक्षा के नजरिये से विकसित कैसे हैं? कभी आपने सोचा है कि जिस इजराइल के लोग अपनी आज़ादी के लिए कभी दर-दर भटक रहे थे आज उनके नाम से पड़ोसी मुस्लिम देश थर-थर कांपते क्यों हैं? आपके सारे सवालों का जवाब आज हम देंगे कि कैसे एक कमजोर समुदाय आज विश्व में ख्याति बटोर चुका है और मुस्लिम देशों की नाक में दम कर रखा है. आपको बता दें कि इजराइल का इतिहास ही कुछ ऐसा है कि जो आपको जरूर जानना चाहिए.
यहूदियों से लोग घृणा करते थे
आज यहूदियों का नाम, उनका डंका बजता है, उनकी सुरक्षा पद्धति को बड़े-बड़े शक्तिशाली देश अपनाने के लिए मरे जा रहे हैं लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि इजराइल में रहने वाले यहूदी कभी इस तरह की जिंदगी जी रहे थे कि जो नर्क से भी ख़राब थी. आप सोचिये अगर किसी समुदाय के पास अपना देश न हो और न ही उनकी कोई सुनने वाला हो तो किस तरीके का हक़ मिलता होगा उन्हें और कैसी जिंदगी जीते होंगे. यहूदियों की जिंदगी कुछ ऐसी थी कि वो 1500 सालों तक फिलिस्तीनियों से मार खा-खाकर भागते रहे. उनकी हालत ऐसी थी कि उनका खुद का कोई अपना देश नही था और ऐसे में वो पूरी दुनिया में भागते रहे, एकजुट नही थे. उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब था और इस वजह से दुनिया की सबसे पढ़ी-लिखी कौम पूरी दुनिया में सिर्फ पैसा कमाने के लिए फैलती रही, बिखरती रही और एकजुट नही हो सकी. जिसका नतीजा ये रहा कि एकजुटता न होने की वजह से इनका फायदा उठाते रहे लोग. हालत तो ये थी कि यहूदियों से लोग घृणा करने लगे थे. यहूदी पैसे बनाने में लगे रहे और दूसरी तरफ इनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा. जब बात इनके अस्तित्व पर आई तब इनकी नींद टूटी नही तो इनके नर्क जैसे जीवन पर पूरा यूरोप खुश हुआ करता था.
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अंग्रेजों और अरबों में बड़ा याराना रहा जिसके कारण यहूदियों के लिए जगह नही थीइजराइल जैसे देश को अस्तित्व में आने से पहले फिलिस्तीन पर अंग्रेजों का दबदबा था जिसके कारण अंग्रेजों और अरबों के बीच काफी अच्छे संबंध थे. द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ा हुआ था और ऐसे अंग्रेजों और अरबों के बीच के अच्छे संबंध के कारण यहूदियों को काफी नुकसान हुआ. यहां तक कि हर तरफ शासन करने वाले इंग्लैण्ड की विदेश नीति में यहूदियों के लिए कोई सहानुभूति नही रखी जाती थी.
एक ऐसा अंग्रेज जिसने किया चमत्कार और बदल दी यहूदियों की जिंदगी
उन दिनों इजराइल जैसे देश का कोई वजूद नही था और यहूदी फिलिस्तीन में छुपकर रहते थे और फिलिस्तीन पर अंग्रेजों का शासन था. यहूदियों के अंदर जागरूकता आती इससे पहले एक अंग्रेज जिसका नाम कैप्टन ऑर्ड विनगेट था. वो इंटेलिजेंस ऑफिसर बनकर फिलिस्तीन आया. विनगेट का जन्म 26 फरवरी 1903 में भारत के आगरा शहर में हुआ था. विनगेट के बारे में कहा जाता था कि वो बेहद ही इंटेलिजेंस था और असाधारण शख्सियत के साथ-साथ बेहद अजीब था. हालांकि इंग्लैण्ड की तरफ से यहूदियों के प्रति कोई संवेदना नही थी लेकिन विनगेट के दिल में यहूदियों के लिए काफी सहानुभूति थी
जब विनगेट ने यहूदियों को लड़ना सिखाया:
इंग्लैण्ड की सरकारी नीति के खिलाफ जाकर विनगेट ने यहूदियों को इकठ्ठा करना शुरू किया और उन्हें आत्मसम्मान के साथ जीने के लिए प्रेरित किया. यही नही उसने यहूदियों को लड़ने के लिए भी तैयार करना शुरू किया. इस ट्रेनिंग में मोशे दयान और ज्वी ब्रेनर जैसे तेज-तर्रार यहूदी विनगेट के शिष्य बने और यही आगे चलकर इजराइल की मिलिट्री कमांडर भी बने. अब यहूदी एक होना शुरू हो चुके थे और अपने सम्मान के लिए लड़ना और लड़ाई के तैयार रहना सीख रहे थे. यहां से दुनिया यहूदियों का जलवा देखने के लिए तैयार हो रही थी.
अरब गैंग आती और यहूदियों पर हमला करके चली जाती:
यहूदियों की हालत ऐसी थी कि वो अपने कैम्पों में रक्षात्मक मोर्चा लिए बैठे रहते थे और अरब गैंग आक्रामक नीति के साथ आकर इनपर हमला करते और चले जाते, यहूदी मार खाकर और जैसे तैसे अपने आप को बचाकर जरुरी कार्रवाई करके रह जाये. विनगेट के सम्पर्क में आते ही यहूदियों को आक्रामक रणनीति सिखने को मिली. विनगेट ने यहूदियों को आक्रामक रणनीति सिखाई जिसके बाद से यहूदियों में आक्रामकता आती गयी.
जब विनगेट ने ज्वी ब्रेनर से पूछा कि “अरब के लोग तुम्हारा खून पी जाएंगे”
विनगेट ने यहूदियों को बना दिया सबसे शक्तिशाली:
यहूदियों की हालत देखकर विनगेट ने उन्हें प्रशिक्षित करना शुरू किया और इतना ही नही यहूदियों की टुकड़ियों का कई सैनिक अभियानों में नेतृत्व भी किया. सटीक रणनीति के जरिये वो अरब ठिकानों का पता लगाता और घात लगाकर उनपर हमला करता. आक्रामकता से उन्हें मारकर अरब लोगों की लाशों को फिलिस्तीनी पुलिस स्टेशनों के सामने फेंककर यहूदियों की ताकत साबित करता. विनगेट ने यहूदियों को न सिर्फ डटकर लड़ना सिखाया बल्कि उनकी सोच को भी बदलकर रख दिया. अब जो यहूदी डर-डरकर रहते थे और छुपकर रहते थे अब वहीं यहूदी आक्रामकता के साथ अपने अस्तित्व के लिए लड़ने लगे और अरबों को मुंहतोड़ जवाब देने लगे. विनगेट ने यहूदियों को सैन्य रणनीति बनाने की कला सिखाई जिसका नतीजा ये है कि आज पूरी दुनिया इजराइल से सीख लेता है.
विनगेट की वजह से इजराइल को मोशे दयान जैसे तेज तर्रार और बहादुर जनरल मिले. विनगेट का निधन 24 मार्च 1944 में विश्नुपुर(मणिपुर) में हुआ था. भारत में जन्म लेने वाले और भारत में ही अंतिम सांस लेने वाले विनगेट ने यहूदियों को जीने का एक अलग तरीका बताया और उनकी जिंदगी बदल कर रख दी. भारत और इजराइल के बीच जिस तरीके रिश्ते हैं उसको देखते हुए विनगेट का रोल अहम हो जाता है. इजराइल आज एक यहूदी देश है और इस देश में विनगेट ही एक ऐसे गैर-यहूदी हैं जिनकी मूर्ति इजराइल में लगाई गयी है. आज इजराइल सबके लिए एक उदाहरण है कि कैसे खुद पर यकीन करके सबसे अलग रहा जा सकता है और खुद की रक्षा की जा सकती है.
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